फर्जी एफआईआर करने के मामले में कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला , अपने अवैध उद्देश्य की पूर्ति हेतु पुलिस व न्यायालय को माध्यम बनाना घोर आपत्तिजनक

फर्जी एफआईआर करने के मामले में कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला , अपने अवैध उद्देश्य की पूर्ति हेतु पुलिस व न्यायालय को माध्यम बनाना घोर आपत्तिजनक

ब्यूरो रिपोर्ट -  NEWS FLASH INDIA : उत्तर प्रदेश के बरेली में कोर्ट का एक फैसला वर्तमान समाज में चर्चा का विषय बन गया है जिसमें न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग करने और फर्जी मुकदमे करने वालों को कड़ा सबक देने के लिए न्यायाधीश ज्ञानेंद्र त्रिपाठी द्वारा बेहद कड़ा फैसला सुनाया गया है। 

इस फैसले के आने के बाद, इसे एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला माना जा रहा है । जो फर्जी मुकदमे करके निर्दोष लोगों को गंभीर अपराधों में फंसा कर दंडित कराने के चलन पर रोक लगाने की ओर एक बड़ा कदम साबित होगा। 

मामला उत्तर प्रदेश के जनपद बरेली का है जहां एक 15 साल की नाबालिक द्वारा एक व्यक्ति पर रेप का आरोप लगाया गया और पुलिस ने   थाना बारादरी पर मुकद्दमा अपराध संख्या  1029/19 दर्ज कर आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। आरोपी व्यक्ति 4 साल 6 महीने 8 दिन जेल में रहा। न्यायिक कार्यवाही के दौरान न्यायालय में आरोप साबित नहीं हो सके और जांच के बाद आरोपी बेगुन साबित हुआ। जिसको कोर्ट ने बाइज्जत बरी कर दिया।

न्यायालय अपर सत्र न्यायाधीश, त्वरित न्यायालय, बरेली द्वारा पारित आदेश, दिनांकित 08.02.2024 के माध्यम से, अभियुक्ता के विरूद्ध धारा-340 (डी) द०प्र०सं० के अन्तर्गत की गयी कार्यवाही के अनुक्रम में, दिये गये निर्देश के अनुसरण में, पेशकार / मुंसरिम, द्वारा किये गये परिवाद, दिनांकित 08.02.2024 पर मुख्य न्यायिक दण्डाधिकारी, बरेली द्वारा अन्तर्गत धारा-195 भा०द०सं० संज्ञान लिया गया।

इस प्रकरण की सुनवाई कर रहे अपर सत्र न्यायाधीश  बरेली , माननीय ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए झूठा केस करने वाली लड़की को दोषी माना और अपने फैसले में उन्होंने उतने दिन जेल में रहने की सजा लड़की को सुनाई , जितने दिन वह व्यक्ति जेल में रहा ।साथ ही कोर्ट ने झूठा केस करने लड़की पर 5 लाख 88 हजार रूपये का जुर्माना भी लगाया, जो अब आरोप मुक्त हुए पीड़ित व्यक्ति को मिलेगा।

अपने आदेश में उन्होंने लिखा कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए विशेष रूप से बनाए गए विधिक प्रावधानों का अनुचित लाभ लेकर धन वसूली करने की प्रवृत्ति रखने वाली सिद्धदोष सदृश महिलाओ हेतु मिसाल बन सके।

मुकदमे से दोष मुक्त हुआ व्यक्ति 30 सितंबर 2019 से 8 अप्रैल 2024 तक जेल में रहा। अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि यह संपूर्ण समाज के लिए अत्यंत गंभीर स्थिति को इंगित करता है जिसमें महिलाओं की सुरक्षा हेतु विधायन द्वारा विशेषत: अधिनियमित प्रावधानों का घोर दुरुपयोग करते हुए एक श्रमिक स्तर के व्यक्ति को उपरोक्त लंबी अवधि हेतु कारागार में निरुद्धि हेतु बाध्य किया गया।

अपने अवैध उद्देश्य की पूर्ति हेतु , पुलिस व न्यायालय को माध्यम बनाना घोर आपत्तिजनक है। यद्यपि महिलाओं की सुरक्षा को तत्संबंधी नीतियों व विधियों के माध्यम से, शासन प्रशासन व न्यायालय द्वारा सुनिश्चित किया जाना सर्वथा उचित और अपेक्षित है, किंतु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि इनका अनुचित लाभ लेने वाली महिलाओं को पुरुषों के हितों पर आघात करने की छूट प्रदान की जाए। ऐसी स्थिति में सिद्ध दोष को कठोर दंड से दंडित किया जाना उचित प्रतीत होता है।

आदेश के अंतिम हिस्से में अपर सत्र न्यायाधीश श्री ज्ञानेंद्र त्रिपाठी द्वारा झूठा मुकदमा करने वाली लड़की को भारतीय दंड संहिता 1860(45) की धारा 195 में 4 वर्ष 6 महीने 8 दिन अर्थात 1653 दिन का सश्रम कारावास तथा  5,88,822 रूपये के आर्थिक दंड से दण्डित किया ।

लखनऊ बार एसोसिएशन के अधिवक्ता विनीत मिश्रा नितिन और अधिवक्ता सोमेश रस्तोगी आदि द्वारा इस फैसले को लेकर अपनी प्रतिक्रिया सोशल मीडिया पर साझा की गई अपनी प्रतिक्रिया में उन्होंने ऐसे फैसलों को फर्जी मुकदमे करने वालों की रूहू कपाने वाले फैसला बताया । तो वहीं अधिवक्ता सोमेश रस्तोगी ने इसे जायज फैसला ठहराते हुए गलत कैसे करने वालों की हिम्मत पर अंकुश लगाने वाला फैसला बताया।