इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय में साजिशन SC/ST एक्ट के तहत दर्ज F.I.R को रद्द किया , प्रकरण से जुड़े भू- माफियाओं पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की जांच के दिए आदेश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय में साजिशन SC/ST एक्ट के तहत दर्ज  F.I.R को रद्द किया  , प्रकरण से जुड़े  भू- माफियाओं  पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की जांच के दिए आदेश

ब्यूरो रिपोर्ट: News Flash INDIA-इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले में धारा 482 सीआरपीसी के तहत सुनवाई करते हुए ऐतिहासिक निर्णय दिया है। हाईकोर्ट ने  देहरादून निवासी याचिकाकर्ता की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता और उसके पति के खिलाफ एससी/ एसटी एक्ट सहित आधा दर्जन गंभीर धाराओं में दर्ज मामले में महत्वपूर्ण निर्णय दिया है ।और अपने फैसले में हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द करते हुए प्रकरण से जुड़े भू- माफियाओं, राजस्व अधिकारियों और पुलिस अधिकारियों की भूमिका पर टिप्पणी करते हुए सभी की कार्यशैली और प्रकरण में उनकी भूमिका की जांच के आदेश दिए हैं।

 याचिकाकर्ता द्वारा उत्तर प्रदेश के जनपद सहारनपुर में वर्ष 2016 में एक जमीन खरीदी गई थी जिस पर कुछ स्थानीय भूमाफियाओं द्वारा अवैध कब्जा करने का प्रयास किया जा रहा था। उस जमीन को हड़पने के लिए आरोपियों द्वारा पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों से मिलीभगत की गई और याचिकाकर्ता और उसके पति के खिलाफ षड्यंत्र रचते हुए सहारनपुर जिले के बिहारीगढ़ थाने में मुकद्दमा संख्या 78/2023 अंतर्गत धारा 332, 341,353, 389, 504, 506 आईपीसी  और धारा 3(1)(da), 3(1)(dha), 3(2)(v) SC/ST एक्ट दर्ज कर दिया ,जिसमें पुलिस द्वारा चार्जशीट भी लगा दी गई थी ।
इस मामले में गंभीर बात यह थी कि दर्ज किए गए इस मुकदमे में क्षेत्र का लेखपाल वादी बना, जिसने स्वयं के साथ घटना कारित होना दिखाते हुए जाति सूचक शब्दों का प्रयोग करने का आरोप याचिकाकर्ता और उसके पति पर लगाया था। 
याचिकाकर्ता द्वारा जांच अधिकारी के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए अपने ऊपर दर्ज मुकद्दमे से संबंधित सभी सबूत वीडियो ऑडियो और दस्तावेज आदि सौंप गए लेकिन साजिशन दर्ज इस FIR की जांच करने वाले जांच अधिकारी ने किसी भी सबूत को केस डायरी का हिस्सा नहीं बनाया और सभी सबूत को नजरअंदाज कर दिया।
वादी पक्ष की ओर से अधिवक्ता अवनीश त्रिपाठी ने कोर्ट में पूरे घटनाक्रम से संबंधित तथ्य रखें । उन्होंने कोर्ट में प्रकरण के समस्त तथ्य रखें, उन्होंने कोर्ट को बताया कि किस प्रकार पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों से भू- माफियाओं द्वारा मिलीभगत कर जमीनी हड़पने से साजिश की गई है और याचिकाकर्ता को जबरन आपराधिक मामले में फंसाकर दर दर की ठोकरें खाने के लिए मजबूर और प्रताड़ित किया गया है।
  • सुनवाई के दौरान कोर्ट ने जाति सूचक शब्दों का उपयोग करने के आरोप पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह प्रत्यक्ष तौर पर कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है बिना किसी एक सबूत के कि वादी के खिलाफ एफआइआर दर्ज करवाने वाले लेखपाल की जाति से याचिकाकर्ता किसी भी प्रकार परिचित था अनुसूचित जाति के व्यक्ति के विरुद्ध अनजाने में की गई जाति सूचक टिप्पणी पर एससी एसटी एक्ट की धारा 3(2)(v) का अपराध नहीं बनता , ऐसा तभी माना जाएगा जब टिप्पणी करने वाला जानता हो कि जिसके खिलाफ जाति सूचक अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है वह अनुसूचित जाति का व्यक्ति है और कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट के तहत चल रहे केस की कार्यवाही को रद्द कर दिया।
  • इस संबंध में हाईकोर्ट ने  Dinesh v. State of Rajasthan, (2006) 3 SCC 771 और  Khuman Singh vs. State of Madhya Pradesh, 2018 SCC Online MP 1512  सुप्रीम कोर्ट, के निर्णय का हवाला दिया। 
कोर्ट ने माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का आधार देते हुए कहा कि जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि याचिकाकर्ता पीड़ित की जाति से परिचित थे। तब तक उनके लिए ऐसा कोई मौका नहीं था जहां वे इस तरह के शब्दों का उपयोग कर सकें और अगर ऐसा हुआ भी है तो वह जानबूझकर की गई टिप्पणी नहीं है अतः यह अपराध एससी/एसटी एक्ट की धारा 3 (2)(v) के तहत नही आता।
  • साथ ही सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने माननीय सुप्रीम कोर्ट के State of Haryana Vs. Bhajan Lal 1992 Supp (1) SCC 335 का हवाला देते हुए धारा 482 सीआरपीसी के तहत जारी दिशा निर्देशों और परिस्थितियों का हवाला दिया कि किन परिस्थितियों में न्यायालय को अपनी अंतर्निहित शक्ति के तहत, सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एक आवेदन पर विचार करें। 
कोर्ट ने आदेश में सुप्रीम कोर्ट के Dinesh vs State of Rajasthan (supra) और Khuman Singh मामले में दिए गए निर्णयों के तथ्यों के आधार पर याचिका को स्वीकार करते हुए याचिकाकर्ता और उसके पति के खिलाफ थाना बिहारीगढ़ जिला सहारनपुर में दर्ज एफआइआर को समाप्त कर दिया।
  • कोर्ट ने निर्णय देते हुए कहा कि In view of the aforesaid facts and circumstances of the case and the ratio laid down by the Hon’ble Supreme Court in Dinesh vs State of Rajasthan (supra) and Khuman Singh (supra) the instant application is allowed and the proceedings initiated in Case Crime No. 78 of 2023 (State vs. Dhruv Sethi and another), under Sections 332, 341, 353, 389, 504, 506 I.P.C. and Sections 3(1)(da), 3(1)(dha),3(2)(v) of the Scheduled Caste and the Scheduled Tribes (Prevention of Atrocities) Act, 1989, Police Station Biharigarh , District Saharanpur are hereby quashed.
कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि कोर्ट अपनी जिम्मेदारी का पालन नहीं कर सकेगा अगर इस तरह की गतिविधियों को उत्तर प्रदेश में और किसी के द्वारा नहीं,एक सरकारी कर्मचारियों द्वारा संचालित किया जाएगा , इस प्रकार की गतिविधियों का किसी भी प्रकार समर्थन नहीं किया जा सकता। 

यहां भू-माफियाओं की मिलीभगत है राजस्व अधिकारी और तत्कालीन एस.एच.ओ. प्रकरण में अहम भूमिका निभाते नजर आ रहे हैं।  जिसमें एक पति पत्नी को गलत तरीके से आपराधिक कार्यवाही में फंसाया गया है और  उन्हें दर-दर भटकने के लिए मजबूर किया गया है। इस संबंध में राजस्व अधिकारियों, पुलिस कर्मियों का आचरण और भू-माफियाओं से उनकी मिलीभगत की भी जांच हो। 

कोर्ट ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा भूमाफियाओं के खिलाफ मई 2022 में दर्ज कराए गए दो मामलों में और दिनांक 12.08.2022 को आईजीआरएस /डैशबोर्ड पर की गई शिकायत की भी उचित जांच की जरूरत है। जिसको लेकर कोर्ट ने डीजीपी उत्तर प्रदेश से अनुरोध करते हुए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक द्वारा करीब 4 महीने में जांच पूरी करने हेतु आग्रह किया। 
Read Case Order :

Files